जब अजीम प्रेमजी के पिता ने जिन्ना के ऑफर को ठुकराया वरना Wipro पाकिस्तान में होती

भारत में सॉफ्टवेयर की टॉप कंपनियों में एक है विप्रो. इसके संस्थापक हैं अजीम हाशिम प्रेमजी. अजीम प्रेमजी को भारत का बिल गेट्स भी कहा जाता है. उनके पिता के एक फैसले ने भारत को इतना बड़ा उद्योगपति दिया वरना वह आज पाकिस्तान में होते. आइए आपको बताते हैं ये पूरी कहानी.

अजीम प्रेमजी भारत की आईटी इंडस्ट्री के शहंशाह के रूप में जाने जाते हैं. वह न सिर्फ एक उद्योगपति हैं बल्कि बहुत बड़े दानी भी हैं. वह साल 1999 से लेकर 2005 तक भारत के सबसे धनी व्यक्ति भी रहे. फोर्ब्स द्वारा दिसंबर 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 में वह एशिया के दानवीरों की सूची में टॉप पर थे. उन्होंने उस साल 7.6 अरब डॉलर के विप्रो के शेयर को शिक्षा के लिए समर्पित अपने फाउंडेशन को दान में दे दिया था. अजीम प्रेमजी के इस काम से बिल गेट्स भी खासा प्रेरित हुए और उन्होंने कहा कि मैं अजीम प्रेमजी के फैसले से प्रभावित हूं. उनका योगदान काफी असरदार साबित होगा.

विप्रो जैसी बड़ी कंपनी को बनाने में उनकी दूरदर्शिता का अहम रोल है. उनके सही वक्त पर लिए गए एक सही फैसले ने विप्रो को इतना बड़ा बिजनेस अंपायर के रूप में खड़ा कर दिया. अजीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को मुंबई के एक शिया मुस्लिम परिवार में हुआ. उनके पूर्वज मूल रूप से गुजरात के कच्छ के निवासी थे.

उनके पिता मुहम्मद हाशिम प्रेमजी एक प्रसिद्ध व्यवसायी थे और ‘राइस किंग ऑफ बर्मा’ के नाम से जाने जाते थे. हाशिम प्रेमजी ने साल 1945 में महाराष्ट्र के जलगांव जिले में ‘वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ नाम की कंपनी की स्थापना की. यह कंपनी सनफ्लावर वनस्पति ऑयल और कपड़े धोने के साबुन का निर्माण करती थी.

जब जिन्ना के ऑफर को उनके पिता ने ठुकराया

वह 1944 का साल था, जब मुस्लिम लीग पाकिस्तान की डिमांड कर रही थी और जिन्ना देश के पढ़े लिखे और अमीर मुस्लिमों को जोड़ने का काम कर रहे थे. मुस्लिम लीग भी कांग्रेस की तर्ज पर एक नेशनल प्लानिंग कमेटी बनाने की तैयारी कर रही थी. कमेटी में शामिल होने के लिए जिन्ना ने हाशिम प्रेमजी को अपने पास बुलाया, लेकिन उन्होंने कमेटी में शामिल होने से इनकार कर दिया. उन्हें भारत के धर्मनिरपेक्ष नेताओं पर भरोसा था और भारत में अपना भविष्य सुरक्षित लग रहा था.

इसके बाद भारत का विभाजन हो गया. विभाजन के बाद मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान को विकसित करने की चिंता थी. इसके लिए उन्हें दूरदर्शी कारोबारियों की जरूरत थी. जिन्ना को एकबार फिर हाशिम प्रेमजी की याद आई और दोबारा जिन्ना ने हाशिम प्रेमजी को पाकिस्तान आने का ऑफर दिया पर उन्होंने जिन्ना के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और भारत में ही रहने का फैसला किया. अगर उस वक्त अजीम प्रेमजी के पिता ने जिन्ना के ऑफर को स्वीकार कर लिया होता तो विप्रो जैसी सॉप्टवेयर की इतनी बड़ी कंपनी भारत के बजाय पाकिस्तान में होती.

अजीम प्रेमजी का अहम फैसला और खड़ी हो गई विप्रो

कहते हैं कि इंसान अगर दूरदर्शी हो और सही वक्त पर सही फैसला ले तो कुछ भी असंभव नहीं होता. कुछ ऐसा ही किया अजीम प्रेमजी ने. अजीम प्रेमजी के पिता ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्हें अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी भेजा था. लेकिन दुर्भाग्य से उनके पिता की मौत हो गई और प्रेमजी इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर भारत वापस लौट गए. उस समय उनकी उम्र सिर्फ 21 साल थी.

भारत वापस आकर उन्होंने अपने पिता का कारोबार संभाल लिया और कंपनी का विस्तार शुरू किया. 1980 के दशक में युवा प्रेमजी ने इनफॉर्मेशन टेकनोलॉजी की असीम संभावना को परख लिया और अपनी कंपनी का नाम विप्रो कर दिया. इसके बाद अजीम प्रेमजी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने अमेरिका के सेंटिनल कंप्यूटर कॉरपोरेशन के साथ मिलकर मिनी कंप्यूटर बनाना शुरू किया. इसतरह से उन्होंने साबुन की अपनी कंपनी को सॉफ्टवेयर कंपनी में बदलकर आईटी सेक्टर पर ध्यान केंद्रित किया और विप्रो जैसी बड़ी कंपनी खड़ी कर दी.

बेटे रिशद ने संभाली विप्रो की कमान

अजीम प्रेमजी का विवाह यास्मीन के साथ हुआ और उनके दो पुत्र हैं रिशद और तारिक. रिशद वर्तमान में विप्रो कंपनी की कमान संभाल रहे हैं. साल 2019 जुलाई में दिग्गज आईटी कंपनी विप्रो के मालिक अजीम प्रेमजी एग्जीक्यूटिव चेयरमैन और प्रबंध निदेशक के पद से रिटायर हो गए. अजीम प्रेमजी के रिटायरमेंट के बाद विप्रो की कमान उनके बेटे रिशद ने संभाल ली है. रिशद अगले 5 सालों तक विप्रो के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन और प्रबंध निदेशक बने रहेंगे. हालांकि इस दौरान अजीम प्रेमजी विप्रो के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और फाउंडर चेयरमैन के तौर पर जुड़े रहेंगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *